सांख्य
प्रवर्तक — कपिल मुनि
सांख्य भारत के प्राचीनतम दर्शनों में से एक है। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति पुरुष एवं प्रकृति इन दो तत्त्वों के संयोग से मानी गई है। पुरुष चेतन है, प्रकृति जड़ है। पचीस तत्त्वों का विवेचन इस दर्शन की विशेषता है।
भारतीय दर्शनशास्त्र भारतीय उपद्वीप में विकसित सभ्यता का एक अभिन्न अंग है। भारतीय समाज के आचार और विचार दोनों पर भारतीय दर्शनों का गहरा प्रभाव है। अगर असल में 'भारतीय' होने का अर्थ खोजना है तो पहले भारतीय दर्शनों का परामर्श अनिवार्य हो जाता है।
ज़्यादातर दर्शनशास्त्र के लिए अंग्रेजी शब्द 'Philosophy' प्रयुक्त किया जाता है। मगर इन दो शब्दों के तात्पर्य में बहुत ही अंतर है। दर्शनशास्त्र के विषय में विभिन्न प्रकार की अवधारणाएँ प्रचलित हैं। कोई इसे बुढ़ापे में करने की बातें मानता है तो कई लोग इसे केवल बड़े-बड़े विद्वानों के समय यापन का साधन मानते हैं।
मगर 'दर्शन' का हर एक के जीवन से गहरा सम्बन्ध है।
इस उपक्रम में हम छह आस्तिक तथा तीन नास्तिक दर्शनों के बारे में चर्चा करेंगे।
दर्शनों की अर्थगंभीरता और व्याप्ति का विचार करते हुए इतनी कम अवधि में उनका समग्र ग्रहण करना-कराना तो असंभव ही है। पर केवल कुछ किंवदंतियाँ या विपरीत अवधारणाओं के कारण दर्शनशास्त्र से दूर रहनेवाले जनसाधारण के मन में दर्शनों के प्रति आस्था निर्माण करने का यह उपक्रम मात्र एक प्रयास है।
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भारतीय दार्शनिक परम्परा में नौ प्रमुख दर्शन विकसित हुए, जिनमें छह वेदों की प्रामाणिकता स्वीकार करते हैं तथा तीन स्वतंत्र मार्ग अपनाते हैं। प्रत्येक दर्शन जीवन के मूलभूत प्रश्नों का अपनी विशिष्ट दृष्टि से उत्तर देता है।
प्रवर्तक — कपिल मुनि
सांख्य भारत के प्राचीनतम दर्शनों में से एक है। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति पुरुष एवं प्रकृति इन दो तत्त्वों के संयोग से मानी गई है। पुरुष चेतन है, प्रकृति जड़ है। पचीस तत्त्वों का विवेचन इस दर्शन की विशेषता है।
प्रवर्तक — पतञ्जलि मुनि
योगदर्शन सांख्य के सैद्धान्तिक आधार पर साधना का व्यावहारिक मार्ग प्रस्तुत करता है। चित्तवृत्तियों के निरोध को योग कहा गया है। अष्टांगयोग की साधना द्वारा कैवल्य की प्राप्ति इसका लक्ष्य है।
प्रवर्तक — कणाद मुनि
वैशेषिक दर्शन पदार्थों के स्वरूप का विश्लेषण करता है। द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष एवं समवाय — इन छह पदार्थों के ज्ञान से मोक्ष प्राप्त होता है। परमाणुवाद इसकी प्रमुख देन है।
प्रवर्तक — गौतम मुनि
न्यायदर्शन तर्कशास्त्र एवं प्रमाणशास्त्र का विस्तृत विवेचन करता है। प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान तथा शब्द — ये चार प्रमाण यथार्थ ज्ञान के साधन हैं। सम्यक् ज्ञान द्वारा दुःख-निवृत्ति इसका उद्देश्य है।
प्रवर्तक — जैमिनि मुनि
पूर्वमीमांसा वेदों के कर्मकाण्ड भाग की व्याख्या करती है। धर्म का स्वरूप, यज्ञविधि की मीमांसा तथा वैदिक वाक्यों का अर्थनिर्णय इसके प्रमुख विषय हैं। वेद अपौरुषेय एवं नित्य माने गये हैं।
प्रवर्तक — बादरायण व्यास
वेदान्त उपनिषदों के ज्ञानकाण्ड का दर्शन है। ब्रह्म, जीव एवं जगत् के स्वरूप तथा परस्पर सम्बन्ध का विचार इसका केन्द्र है। अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, द्वैत आदि इसकी प्रमुख शाखाएँ हैं।
प्रवर्तक — बृहस्पति
चार्वाक भारत का भौतिकवादी दर्शन है। केवल प्रत्यक्ष को प्रमाण मानकर यह परलोक, आत्मा एवं ईश्वर का निषेध करता है। पृथ्वी, जल, तेज तथा वायु — इन चार भूतों से ही चेतना की उत्पत्ति मानी गई है।
प्रवर्तक — गौतम बुद्ध
बौद्धदर्शन दुःख की समस्या एवं उसके निवारण पर केन्द्रित है। चार आर्यसत्य तथा अष्टांगिक मार्ग इसके आधारस्तम्भ हैं। अनित्यता, अनात्मवाद तथा प्रतीत्यसमुत्पाद इसके मूल सिद्धान्त हैं।
प्रवर्तक — महावीर स्वामी
जैनदर्शन जीव एवं अजीव के भेद पर आधारित है। अनेकान्तवाद तथा स्याद्वाद इसकी विशिष्ट पद्धतियाँ हैं। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह — ये पाँच महाव्रत मोक्षमार्ग के साधन हैं।
असिस्टेंट डायरेक्टर, वैदिक संशोधन मंडल, पुणे
इस अभ्यासक्रम की रचना की है श्री प्रणव गोखलेजी ने। श्री प्रणव गोखले पुणे के प्रसिद्ध वैदिक संशोधन मंडल के असिस्टेंट डायरेक्टर हैं। वे दर्शनशास्त्रों में अपनी PhD का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने संस्कृत भाषा में M.A. हासिल की है, और M.A. के दौरान "वेदांत तत्वज्ञान" उनके अनुसंधान का मुख्य विषय था। श्री प्रणव गोखलेजी के रिसर्च पेपर अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हुए हैं।
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